Thursday, July 27, 2017

सातवाँ अध्याय: सातवाँ दिन (26.08.14)

सातवाँ अध्याय: सातवाँ दिन (26.08.14)


आज भारत लौटने का दिन। उद्भ्रांत जी का मन था कि विश्व-कवि लू-शून के घर और म्यूजियम का परिदर्शन करने का। लू-शून प्रेमचंद के समकालीन थे। उद्भ्रांत जी से प्रेरित होकर 20-25 साहित्यकार लूशून के अंतिम निवास स्थान और म्यूजियम देखने गए। जितना भव्य घर,उससे ज्यादा उनका म्यूजियम। उनके टेबल,लेख,किताबें,शयनकक्ष,लूशून की अपने मित्र-मंडली के साथ बैठी मोम की बनी जीवंत मूर्तियाँ। लू शुन की कोठरी के बारे में अरुण कमलजी की कविता अपने आप में यादगार हो उठती है,जिसे पढ़कर मुझे लू शुन की जिंदगी के बारे में जानने की उत्सुकता होने लगी थी। कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार थी:-  
लू शुन की कोठरी
बस एक आदमी भर जगह,एक कदम चौड़ी
खिड़की किनारे पतला सा बिस्तर बाहर अखरोट का पेड़
और सिरहाने एक छोटी सी मेज और लंबे शीशे वाला लैंप-
इतनी छोटी कोठरी से आन्टा इतना बड़ा देश
इतनी छोटी मेज पार फैलीं इतनी बड़ी कथाएँ
हर कथा ज्यों चीन का नक्शा ।
उनकी रिकोर्डेड आवाज सुनने के लिए भी सरकार ने शुल्क लगाया है। उद्भ्रांत जी के शब्दों में , अगर किसी लेखक को सही अर्थों में सरकारी सम्मान मिला है तो वह है लू-शून। विश्व की किसी भी सरकार ने शायद ही इतना बड़ा सम्मान किसी लेखक को दिया होगा। लू-शून के वहाँ से लौटते लौटते बारह बज गए थे।
शंघाई में हम जिस होटल में रुके थे ,वह थी 'होटल हॉलिडे इन एक्स्प्रेस'। होटल के सामने बस आ चुकी थी। सभी ने अपने सामान रखकर बस से जाते हुए पूर्व निर्धारित इंडियन रेस्टोरेन्ट में खाना खाकर सड़क के किनारे भावतोल वाली 'फेक' बाजार  से छोटी-मोटी खरीददारी किसी ने घड़ी तो किसी ने सूटकेस खरीदा। बहुत ज्यादा बारगेनिंग की जा सकती थी। मैंने भी दोनों बेटों के लिए दो जी-शॉक वाली घड़ियाँ खरीदीं।खरीददारी के शौकीनों का स्वर्ग है शंघाई। मॉर्डन फैशनेबल वस्तुओं की खरीदारी के लिए नॉनजिंग रोड और क्वाई रोड उपयुक्त है। जबकि सभी खरीददारी के लिए सिचुआन नॉर्थ रोड जाया जा सकता है।
अब बस का रुख पुडोंग एयरपोर्ट की तरफ। पौन घंटे का रास्ता था। एलिस ने एक चीनी गीत सुनाया और बदले में निमिष श्रीवास्तव ने उसकी पसंद - आमिरखान की हिन्दी फिल्म का गाना सुनाया। वह कहने लगी," जैसे इंडिया में चीन के हीरो जैकी शैन,ब्रूसली विख्यात है, वैसे ही चीन में इंडिया के हीरो शाहरुख खान व आमिरखान प्रसिद्ध हैं। चीन में आमिर खान की फिल्म 'थ्री ईडियट' तथा शाहरुख खान की फिल्म 'डॉन' बहुत चली। इंडिया की हिरोइनें बहुत खूबसूरत होती हैं,खासकर उनका गोल-गोल चेहरा और बड़ी-बड़ी आँखें,नाक-नक्श,सुगठित शरीर सुंदरता का एक मानक पैमाना है।"
पुडोंग इन्टरनेशनल एयरपोर्ट नजदीक आने लगा था। एलिस भी नीना की तरह भावुक होने लगी थी। कहने लगी,"हो सकता है,आप लोगों से कभी जीवन में मुलाक़ात हो जाएँ। हो सकता है,कभी मैं इंडिया आ जाऊँ और अगर आप कभी चीन आए तो मुझे अवश्य फोन कीजिएगा। उस समय मैं गाइड नहीं हूंगी। आप मेरे मेहमान होंगे और मैं आपकी मित्र।"
वक्त तेजी से स्मृतियों के पंख फैलाए उड़ता जा रहा था। धीरे-धीरे चीन की यादों का धुंधलका मस्तिष्क के किसी कोने में संस्कार बिन्दु बनने जा रहा था और किसी दूसरे कोने से पैदा हो रही थी मातृभूमि में लौटने की प्रगल्भ चाह। "जननी जन्मभूमि स्वर्गाद्पि गरीयसे"। स्वर्ग से भी बढ़कर है मेरी जन्मभूमि। जहां आजादी है,अपनापन है,अपना घर है, अपना परिवार है। सब अपने ही अपने हैं। चीन अवश्य अच्छा लगा, मगर मेरा भारत और ज्यादा अच्छा। भारत की देवभूमि में पाँव रखते ही ऐसा लगा कि समय करवट बदलेगा और सतयुग की तरह एक बार फिर भारत 'विश्वगुरु' बनकर सारे संसार में शांति,ज्ञान और मानवधर्म की स्थापना करेगा।



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